विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने फिर अपने एक दावे से डॉक्टरों को कटघरे में ला खड़ा किया है। पिछले एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी दोगुनी बढ़ी है। नॉर्मल डिलीवरी के दर्द से बचना कहें या दिन-ब-दिन खराब होते लाइफस्टाइल को दोष दें। इस बीच एक खबर यह भी आ गई है कि डॉक्टर्स नॉर्मल डिलीवरी करने में खुद का समय बर्बाद होता देख रहे हैं और बेवजह ही महिलाओं को सिजेरियन ऑपरेशन की तरफ धकेल रहे हैं। नॉर्म डिलीवरी में महिलाओं दर्द का ज्यादा सामना करना पड़ता है इन हालातों में डॉक्टर्स के लिए भी प्रतिक्षा का समय खासा लंबा हो जाता।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) की तीसरी रिपोर्ट (2005-06) में सीजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा 8.5 प्रतिशत था जबकि सर्वे की चौथी रिपोर्ट (2015-16) में सिजेरियन (ऑपरेशन) के जरिए 17.2 फीसदी बच्चों का जन्म हुआ। करीब एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में दोगुनी वृद्धि चौंका देने वाली है।
देश भर के कई अस्पतालों पर मरीजों के साथ धोखाधड़ी, लापरवाही, जरूरत से ज्यादा बिल और रुपये ऐंठने के मामले सामने आते रहे हैं, ऐसे में एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में दोगुनी वृद्धि कई सवाल पैदा करती है। इससे महिलाओं की जिंदगी पर पड़ने वाले दुष्परिणामों को भी नकारा नहीं जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके साथ ही यह भी कहा है कि ऑक्सीटोसिन नामक एक दवा का उपयोग सिजेरियन डिलीवरी के दौरान बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। जो महिलाओं की प्राकृतिक डिलीवरी से बड़ी छेड़छाड़ है, इसका भी कुप्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
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